THE DEFINITIVE GUIDE TO #ISLAMIC #SABAQ #DEEN #KA

The Definitive Guide to #islamic #sabaq #deen #ka

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अल्लाह की तरफ से अपने बंदों के लिए जिंदगी गुजारने का जो तरीका मोतऐयन किया गया है, उसको “शरीयत” कहते हैं। शरीयते इलाही अपनी आखरी और मुकम्मल सूरत में पैगम्बरे इस्लाम जनाब मुहम्मद रसूलुल्लाह पर नाजिल की गई। शरीयत के बा’ज अहकाम वह हैं, जिन में बुनियादी उसूल व मकासिद की वजाहत करदी गई है, जुजइयात व तफसीलात को ज्यादा वाजेह नहीं किया गया है, जैसे माली मुआमेलात और सियासी मसायेल, ताकि जमाने की तब्दीलीयों के लिहाज से इन अहकाम को मुनतबक किया जासके, जबकि जिंदगी के बा’ज मसायल वह हैं, जिन में मकासिद भी बयान कर दिए गए हैं और उस की अमली शक्ल को भी ज्यादा से ज्यादा वाजेह करने की कोशिश की गई है, यह हैं इबादात और खानदानी जिंदगी के मसायेल।

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मुस्लिम अल्पसंख्यक इस देश में जिस संख्या में है वह देश के शरीर का एक मजबूत अंग है। इस अंग को कष्ट पहुँचा कर कमज़ोर रखना या समय-समय पर झिझक और बेचैनी से पीड़ित करते रहना देश की मज़बूती और विकास को हानि #islamic #sabaq #deen #ka पहुँचाने वाली बात है। आर्थिक पद्धति हो या सत्ता एवं ताकत का मामला हो इसमें देश के इस मुख्य हाथ का मुख्य प्रदर्शन एवं योग्यता का अधिकार ना देना भविष्य के लिए मददगार बनने वाला रवैया नहीं है। यह देश के समस्त विभिन्न बुद्ध जीवियों एवं सत्ताधारी लोगों के समझने की बात है, कि देश को स्वतंत्रता मिलने के पश्चात से विकास एवं मजबूती प्राप्त करने की जो आवश्यकता है, उसके स्रोतों में देश के विभिन्न वर्गों में आपस की संगत और खुश दिली एक बड़ा स्रोत है। इस स्रोत को कमज़ोर नहीं करना चाहिए। जो साधन है उनसे पूरी मदद लेनी चाहिए।

भारत जैसा वसी व अरीज मुल्क जहाँ विभिन्न भाषायें बोली जाती हैं, जहाँ विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न सभ्यता व संस्कृति बनाया जाता है, जहाँ भांति भांति की शक्लें और तसौवरात मौजूद हैं, जहाँ अंदर और बाहर हर तरफ से अमन व अमान और इस्तकरार की बुनियादों को ढाने की साजिशें हो रही हैं, इस देश में हमारी और आप की जो जिम्मेदारी है कि हक और सच को पूरी जुर्अत के साथ पेश करें। अगर एखलास और किरदार की बलंदी के साथ बातें कही जायेंगी तो भारत में आबाद विभिन्न धर्मालंबियों के बीच बेहतर सम्बन्ध और बेहतर सम्पर्क की स्थापना के लिए उसूली व विषयों से संबंधित उद्देश्यपूर्ण वार्ता की राहें खुलेंगी। यह देश विभिन्न धर्मों के मानने वालों से आबाद है, इसलिए उनको उनके अपने धार्मिक शाआयर, रुसूम व रिवाज, धर्म के प्रचार और धर्म की शिक्षा तथा धर्म के अंतर्गत दिये गये कानूनों पर अमल और उन्हें लागू करने की स्वतंत्रता और अधिकार प्राप्त रहना चाहिए। यही इस देश की जम्हूरी विशेषता होगी कि इन सबके साथ मुंसिफाना सुलूक करे और सभों को विकास के समान अवसर प्राप्त हों।

हजरत मौलाना खालिद सैफुल्लाह रहमानी दामत बरकातहुम

हज़रत मौलाना सय्यद निज़ामुद्दीन साहब रह०

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(संस्थापक एवं पुर्व जनरल सेक्रेटरी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड)

इंसान के व्यक्तिक जीवन में आ’माल और तौर तरीके उसके जेहनी फिक्र व ख्याल के अनुसार होते हैं। अगर हमारी अपनी जिंदगी में इस्लामी अहकाम पर अमल जाहिर नहीं हो रहा है, तो इसका यह मतलब लिया जायेगा कि हमारी फिक्र व ख्याल अमल से खाली है। इसके लिए जनगणना में या साधारण बोलचाल में नाम का दर्ज हो जाना काफी नहीं, जबतक कि काम व्वहारिक तौर पर उसके अनुसार नहों। कुछ लोगों का नाम मुत्तकी, कुछ का नाम आबिद और जाहिद होता है, इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि मुत्तकी के नाम से नामित व्यक्ति वास्तव में मुत्तकी और आबिद नाम वाला वास्तव में इबादतगुजार या जाहिद के नाम से पुकारे जाने वाले व्यक्ति में जोहद की विशेषताएं हैं। अतः मुसलमान केवल नाम से नहीं होता बल्कि इसे इस्लाम के सिद्धांत और इसके अनुरूप अमल वाला होना भी आवश्यक है।

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तहरीके इस्लाहे मुआशेरा अॉल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड

Jo log haj ada karne ke liye jate hai, inke liye zaruri hota hai ke wo taqwa ikhtiyar kare, kiyu ki takwa Allah ko behad pasand hai aur Allah ke taqarrub ka zariya hai aur kiyon ke hajj mein bandah Allah ki raza ka talib hota hai, is liye uske liye aise aamal karne zaruri hote hai, jin ke zariye wo Allah ka qurb hasil kare. Isi liye Daurane hajj hujjjaj-e-karaam ki jo tarbiyat hoti hai, wo takwa par mubni hoti hai. Hajj ke dauran na shehwani baton ki ijazat hoti hai, na ladayi jhagde ki aur na Hello nasab wo zaat par fakhr karne ki.

वास्तविकता यह है कि “यूनिफॉर्म सिविल कोड” विभिन्न कारणों से हमारे देश के लिए मुनासिब नहीं है, एक तो इससे अल्पसंख्यकों के धार्मिक अधिकार प्रभावित होंगे, जो संविधान के मूल आत्मा के विपरीत है, दूसरे : एकसमान कानून ऐसे देश के लिए तो मुनासिब हो सकता है, जिसमें एक ही धर्म के मानने वाले और एक ही संस्कृति से सम्बन्ध रखने वाले लोग बसते हों, भारत एक अधिकाधिक समाज से सम्मिलित देश है, जिसमें विभिन्न धर्मों के मानने वाले और विभिन्न संस्कृतियों से सम्बन्ध रखने वाले लोग पाये जाते हैं, बहूलता में एकता ही इसका असल सौंदर्य और इसकी पहचान है, ऐसे देश के लिए एकसमान निजी कानून व्यवहारिक नहीं हैं।

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